एससी एसटी एक्ट सोसाइटी के कमजोर लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए लाया गया था। लेकिन लोगों ने इस कानून का दुरुपयोग करते हुए झूठे मुकदमों में फसाने का हथियार बना लिया। लेकिन इस बीच लखनऊ कोर्ट का सख्त फैसला आया है। जो इस तरह के काम करने वाले लोगों के लिए बड़ा सबक है।
लखनऊ और बाराबंकी में चार अलग-अलग मामलों में अदालतों ने आरोपियों को बरी कर दिया और शिकायतकर्ताओं (complainants)को ही कारावास की सजा सुनाई, जिससे अधिनियम (एक्ट) के दुरुपयोग के खिलाफ एक कड़ा संदेश गया है।
लखनऊ की एससी-एसटी कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए झूठे मुकदमे दर्ज कराने वाले एक अधिवक्ता को दस साल छह महीने की सजा और ढाई लाख रुपये से अधिक के जुर्माने की सजा सुनाई है।
एक मामले में सहदेव ने 12 अप्रैल, 2024 को गाजीपुर थाने में सत्यनारायण और उसके बेटे संजय के खिलाफ डकैती और एससी-एसटी एक्ट लगाने का आरोप लगाते हुए अदालत के माध्यम से शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस जांच में पाया गया कि आरोप झूठे थे। नतीजतन, 2 अप्रैल को अदालत ने सहदेव को मनगढ़ंत मामला दर्ज करने के लिए सात साल की जेल और 201,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
एक अन्य मामले में रमेश रावत का अरुण, इरफान अली, मोहम्मद जीशान और रिजवान से आर्थिक विवाद चल रहा था। 2022 में रावत ने अनुसूचित जाति का होने का दावा करते हुए चिनहट थाने में मारपीट और एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया। जांच में मामला झूठा पाया गया, जिसके बाद कोर्ट ने 8 मई को रावत को पांच साल कैद और 50,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। इसी तरह पांच बीघा जमीन के विवाद में लाखन सिंह ने 2014 में सुनील दुबे और अन्य के खिलाफ हत्या की कोशिश, धमकी, तोड़फोड़ और एससी-एसटी एक्ट के उल्लंघन का मामला दर्ज कराया था। जांच में पता चला कि आरोप झूठे थे। 16 मई को कोर्ट ने लाखन सिंह को 10 साल कैद और 251,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।
आखिरकार बाराबंकी में रेखा देवी ने 29 जून 2021 को जैदपुर थाने में राजेश और भूपेंद्र के खिलाफ धमकी, सामूहिक दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। जांच में आरोप झूठे पाए गए। 16 जून को कोर्ट ने रेखा देवी को सात साल छह महीने की कारावास और 201000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।
अनुसूचित जाति और जनजाति को संरक्षण देने, उनके खिलाफ होने वाले अत्याचारों और शोषण से सुरक्षा के लिए 1989 में एससी-एसटी एक्ट बनाया गया था। एक्ट को बनाने के बाद ऐसे मामलों में त्वरित न्याय( speedy justice) दिलाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की गई। इस एक्ट ने पीड़ितों को राहत तो पहुंचाई, लेकिन काफी हद तक इसका दुरुपयोग भी किया जा रहा है। इस बात का प्रमाण हाल में ही चार मामलों में एससी-एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश की ओर से सुनाया गया फैसला है। विशेष न्यायाधीश ने झूठा केस दर्ज कराने वाले चार लोगों को कड़ी सजा और जुर्माने से दंडित किया है। इससे झूठे केस दर्ज कराने वालों को कड़ी नसीहत मिली है।